ज़बूर 84

रब्ब के घर पर ख़ुशी

1क़ोरह ख़ान्दान का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। तर्ज़ : गित्तीत।

ऐ रब्ब-उल-अफ़्वाज, तेरी सुकूनतगाह कितनी पियारी है!

2मेरी जान रब्ब की बारगाहों के लिए तड़पती हुई निढाल है। मेरा दिल बल्कि पूरा जिस्म ज़िन्दा ख़ुदा को ज़ोर से पुकार रहा है।

3ऐ रब्ब-उल-अफ़्वाज, ऐ मेरे बादशाह और ख़ुदा, तेरी क़ुर्बानगाहों के पास परिन्दे को भी घर मिल गया, अबाबील को भी अपने बच्चों को पालने का घोंसला मिल गया है।

4मुबारक हैं वह जो तेरे घर में बसते हैं, वह हमेशा ही तेरी सिताइश करेंगे। (सिलाह)

5मुबारक हैं वह जो तुझ में अपनी ताक़त पाते, जो दिल से तेरी राहों में चलते हैं।

6वह बुका की ख़ुश्क वादी [a] या रोने वाली यानी आँसूओं की वादी। में से गुज़रते हुए उसे शादाब जगह बना लेते हैं, और बारिशें उसे बर्कतों से ढाँप देती हैं।

7वह क़दम-ब-क़दम तक़वियत पाते हुए आगे बढ़ते, सब कोह-ए-सिय्यून पर अल्लाह के सामने हाज़िर हो जाते हैं।

8ऐ रब्ब, ऐ लश्करों के ख़ुदा, मेरी दुआ सुन! ऐ याक़ूब के ख़ुदा, ध्यान दे! (सिलाह)

9ऐ अल्लाह, हमारी ढाल पर करम की निगाह डाल। अपने मसह किए हुए ख़ादिम के चिहरे पर नज़र कर।

10तेरी बारगाहों में एक दिन किसी और जगह पर हज़ार दिनों से बेहतर है। मुझे अपने ख़ुदा के घर के दरवाज़े पर हाज़िर रहना बेदीनों के घरों में बसने से कहीं ज़ियादा पसन्द है।

11क्यूँकि रब्ब ख़ुदा आफ़्ताब और ढाल है, वही हमें फ़ज़्ल और इज़्ज़त से नवाज़ता है। जो दियानतदारी से चलें उन्हें वह किसी भी अच्छी चीज़ से महरूम नहीं रखता।

12ऐ रब्ब-उल-अफ़्वाज, मुबारक है वह जो तुझ पर भरोसा रखता है

[a] या रोने वाली यानी आँसूओं की वादी।