ज़बूर 6
मुसीबत में दुआ (तौबा का पहला ज़बूर)
1दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। तारदार साज़ों के साथ गाना है।
ऐ रब्ब, ग़ुस्से में मुझे सज़ा न दे, तैश में मुझे तम्बीह न कर।
2ऐ रब्ब, मुझ पर रहम कर, क्यूँकि मैं निढाल हूँ। ऐ रब्ब, मुझे शिफ़ा दे, क्यूँकि मेरे आज़ा दह्शतज़दा हैं।
3मेरी जान निहायत ख़ौफ़ज़दा है। ऐ रब्ब, तू कब तक देर करेगा?
4ऐ रब्ब, वापस आ कर मेरी जान को बचा। अपनी शफ़्क़त की ख़ातिर मुझे छुटकारा दे।
5क्यूँकि मुर्दा तुझे याद नहीं करता। पाताल में कौन तेरी सिताइश करेगा?
6मैं कराहते कराहते थक गया हूँ। पूरी रात रोने से बिस्तर भीग गया है, मेरे आँसूओं से पलंग गल गया है।
7ग़म के मारे मेरी आँखें सूज गई हैं, मेरे मुख़ालिफ़ों के हम्लों से वह ज़ाए होती जा रही हैं।
8ऐ बदकारो, मुझ से दूर हो जाओ, क्यूँकि रब्ब ने मेरी आह-ओ-बुका सुनी है।
9रब्ब ने मेरी इल्तिजाओं को सुन लिया है, मेरी दुआ रब्ब को क़बूल है।
10मेरे तमाम दुश्मनों की रुस्वाई हो जाएगी, और वह सख़्त घबरा जाएँगे। वह मुड़ कर अचानक ही शर्मिन्दा हो जाएँगे।