ज़बूर 53

बेदीन की हमाक़त

1दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। हिक्मत का गीत। तर्ज़ : महलत।

अहमक़ दिल में कहता है, “अल्लाह है ही नहीं!” ऐसे लोग बदचलन हैं, उन की हर्कतें क़ाबिल-ए-घिन हैं। एक भी नहीं है जो अच्छा काम करे।

2अल्लाह ने आस्मान से इन्सान पर नज़र डाली ताकि देखे कि क्या कोई समझदार है? क्या कोई अल्लाह का तालिब है?

3अफ़्सोस, सब सहीह राह से भटक गए, सब के सब बिगड़ गए हैं। कोई नहीं जो भलाई करता हो, एक भी नहीं।

4क्या जो बदी करके मेरी क़ौम को रोटी की तरह खा लेते हैं उन्हें समझ नहीं आती? वह तो अल्लाह को पुकारते ही नहीं।

5तब उन पर सख़्त दह्शत वहाँ छा गई जहाँ पहले दह्शत का सबब नहीं था। जिन्हों ने तुझे घेर रखा था अल्लाह ने उन की हड्डियाँ बिखेर दीं। तू ने उन को रुसवा किया, क्यूँकि अल्लाह ने उन्हें रद्द किया है।

6काश कोह-ए-सिय्यून से इस्राईल की नजात निकले! जब रब्ब अपनी क़ौम को बहाल करेगा तो याक़ूब ख़ुशी के नारे लगाएगा, इस्राईल बाग़ बाग़ होगा।