ज़बूर 5
हिफ़ाज़त के लिए दुआ
1दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए। इसे बाँसरी के साथ गाना है।
ऐ रब्ब, मेरी बातें सुन, मेरी आहों पर ध्यान दे!
2ऐ मेरे बादशाह, मेरे ख़ुदा, मदद के लिए मेरी चीख़ें सुन, क्यूँकि मैं तुझ ही से दुआ करता हूँ।
3ऐ रब्ब, सुब्ह को तू मेरी आवाज़ सुनता है, सुब्ह को मैं तुझे सब कुछ तर्तीब से पेश करके जवाब का इन्तिज़ार करने लगता हूँ।
4क्यूँकि तू ऐसा ख़ुदा नहीं है जो बेदीनी से ख़ुश हो। जो बुरा है वह तेरे हुज़ूर नहीं ठहर सकता।
5मग़रूर तेरे हुज़ूर खड़े नहीं हो सकते, बदकार से तू नफ़रत करता है।
6झूट बोलने वालों को तू तबाह करता, ख़ूँख़ार और धोकेबाज़ से रब्ब घिन खाता है।
7लेकिन मुझ पर तू ने बड़ी मेहरबानी की है, इस लिए मैं तेरे घर में दाख़िल हो सकता, मैं तेरा ख़ौफ़ मान कर तेरी मुक़द्दस सुकूनतगाह के सामने सिज्दा करता हूँ।
8ऐ रब्ब, अपनी रास्त राह पर मेरी राहनुमाई कर ताकि मेरे दुश्मन मुझ पर ग़ालिब न आएँ। अपनी राह को मेरे आगे हमवार कर।
9क्यूँकि उन के मुँह से एक भी क़ाबिल-ए-एतिमाद बात नहीं निकलती। उन का दिल तबाही से भरा रहता, उन का गला खुली क़ब्र है, और उन की ज़बान चिकनी-चुपड़ी बातें उगलती रहती है।
10ऐ रब्ब, उन्हें उन के ग़लत काम का अज्र दे। उन की साज़िशें उन की अपनी तबाही का बाइस बनें। उन्हें उन के मुतअद्दिद गुनाहों के बाइस निकाल कर मुन्तशिर कर दे, क्यूँकि वह तुझ से सरकश हो गए हैं।
11लेकिन जो तुझ में पनाह लेते हैं वह सब ख़ुश हों, वह अबद तक शादियाना बजाएँ, क्यूँकि तू उन्हें मह्फ़ूज़ रखता है। तेरे नाम को पियार करने वाले तेरा जश्न मनाएँ।
12क्यूँकि तू ऐ रब्ब, रास्तबाज़ को बर्कत देता है, तू अपनी मेहरबानी की ढाल से उस की चारों तरफ़ हिफ़ाज़त करता है।