ज़बूर 38

सज़ा से बचने की इल्तिजा (तौबा का तीसरा ज़बूर)

1दाऊद का ज़बूर। याददाश्त के लिए।

ऐ रब्ब, अपने ग़ज़ब में मुझे सज़ा न दे, क़हर में मुझे तम्बीह न कर!

2क्यूँकि तेरे तीर मेरे जिस्म में लग गए हैं, तेरा हाथ मुझ पर भारी है।

3तेरी लानत के बाइस मेरा पूरा जिस्म बीमार है, मेरे गुनाह के बाइस मेरी तमाम हड्डियाँ गलने लगी हैं।

4क्यूँकि मैं अपने गुनाहों के सैलाब में डूब गया हूँ, वह नाक़ाबिल-ए-बर्दाश्त बोझ बन गए हैं।

5मेरी हमाक़त के बाइस मेरे ज़ख़्मों से बदबू आने लगी, वह गलने लगे हैं।

6मैं कुबड़ा बन कर ख़ाक में दब गया हूँ, पूरा दिन मातमी लिबास पहने फिरता हूँ।

7मेरी कमर में शदीद सोज़िश है, पूरा जिस्म बीमार है।

8मैं निढाल और पाश पाश हो गया हूँ। दिल के अज़ाब के बाइस मैं चीख़ता चिल्लाता हूँ।

9ऐ रब्ब, मेरी तमाम आर्ज़ू तेरे सामने है, मेरी आहें तुझ से पोशीदा नहीं रहतीं।

10मेरा दिल ज़ोर से धड़कता, मेरी ताक़त जवाब दे गई बल्कि मेरी आँखों की रौशनी भी जाती रही है।

11मेरे दोस्त और साथी मेरी मुसीबत देख कर मुझ से गुरेज़ करते, मेरे क़रीब के रिश्तेदार दूर खड़े रहते हैं।

12मेरे जानी दुश्मन फंदे बिछा रहे हैं, जो मुझे नुक़्सान पहुँचाना चाहते हैं वह धमकियाँ दे रहे और सारा सारा दिन फ़रेबदिह मन्सूबे बाँध रहे हैं।

13और मैं? मैं तो गोया बहरा हूँ, मैं नहीं सुनता। मैं गूँगे की मानिन्द हूँ जो अपना मुँह नहीं खोलता।

14मैं ऐसा शख़्स बन गया हूँ जो न सुनता, न जवाब में एतिराज़ करता है।

15क्यूँकि ऐ रब्ब, मैं तेरे इन्तिज़ार में हूँ। ऐ रब्ब मेरे ख़ुदा, तू ही मेरी सुनेगा।

16मैं बोला, “ऐसा न हो कि वह मेरा नुक़्सान देख कर बग़लें बजाएँ, वह मेरे पाँओ के डगमगाने पर मुझे दबा कर अपने आप पर फ़ख़र करें।”

17क्यूँकि मैं लड़खड़ाने को हूँ, मेरी अज़ियत मुतवातिर मेरे सामने रहती है।

18चुनाँचे मैं अपना क़ुसूर तस्लीम करता हूँ, मैं अपने गुनाह के बाइस ग़मगीन हूँ।

19मेरे दुश्मन ज़िन्दा और ताक़तवर हैं, और जो बिलावजह मुझ से नफ़रत करते हैं वह बहुत हैं।

20वह नेकी के बदले बदी करते हैं। वह इस लिए मेरे दुश्मन हैं कि मैं भलाई के पीछे लगा रहता हूँ।

21ऐ रब्ब, मुझे तर्क न कर! ऐ अल्लाह, मुझ से दूर न रह!

22ऐ रब्ब मेरी नजात, मेरी मदद करने में जल्दी कर