ज़बूर 31

हिफ़ाज़त के लिए दुआ

1दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए।

ऐ रब्ब, मैं ने तुझ में पनाह ली है। मुझे कभी शर्मिन्दा न होने दे बल्कि अपनी रास्ती के मुताबिक़ मुझे बचा!

2अपना कान मेरी तरफ़ झुका, जल्द ही मुझे छुटकारा दे। चटान का मेरा बुर्ज हो, पहाड़ का क़िलआ जिस में मैं पनाह ले कर नजात पा सकूँ।

3क्यूँकि तू मेरी चटान, मेरा क़िलआ है, अपने नाम की ख़ातिर मेरी राहनुमाई, मेरी क़ियादत कर।

4मुझे उस जाल से निकाल दे जो मुझे पकड़ने के लिए चुपके से बिछाया गया है। क्यूँकि तू ही मेरी पनाहगाह है।

5मैं अपनी रूह तेरे हाथों में सौंपता हूँ। ऐ रब्ब, ऐ वफ़ादार ख़ुदा, तू ने फ़िद्या दे कर मुझे छुड़ाया है!

6मैं उन से नफ़रत रखता हूँ जो बेकार बुतों से लिपटे रहते हैं। मैं तो रब्ब पर भरोसा रखता हूँ।

7मैं बाग़ बाग़ हूँगा और तेरी शफ़्क़त की ख़ुशी मनाऊँगा, क्यूँकि तू ने मेरी मुसीबत देख कर मेरी जान की परेशानी का ख़याल किया है।

8तू ने मुझे दुश्मन के हवाले नहीं किया बल्कि मेरे पाँओ को खुले मैदान में क़ाइम कर दिया है।

9ऐ रब्ब, मुझ पर मेहरबानी कर, क्यूँकि मैं मुसीबत में हूँ। ग़म के मारे मेरी आँखें सूज गई हैं, मेरी जान और जिस्म गल रहे हैं।

10मेरी ज़िन्दगी दुख की चक्की में पिस रही है, मेरे साल आहें भरते भरते ज़ाए हो रहे हैं। मेरे क़ुसूर की वजह से मेरी ताक़त जवाब दे गई, मेरी हड्डियाँ गलने सड़ने लगी हैं।

11मैं अपने दुश्मनों के लिए मज़ाक़ का निशाना बन गया हूँ बल्कि मेरे हमसाय भी मुझे लान-तान करते, मेरे जानने वाले मुझ से दह्शत खाते हैं। गली में जो भी मुझे देखे मुझ से भाग जाता है।

12मैं मुर्दों की मानिन्द उन की याददाश्त से मिट गया हूँ, मुझे ठीकरे की तरह फैंक दिया गया है।

13बहुतों की अफ़्वाहें मुझ तक पहुँच गई हैं, चारों तरफ़ से हौलनाक ख़बरें मिल रही हैं। वह मिल कर मेरे ख़िलाफ़ साज़िशें कर रहे, मुझे क़त्ल करने के मन्सूबे बाँध रहे हैं।

14लेकिन मैं ऐ रब्ब, तुझ पर भरोसा रखता हूँ। मैं कहता हूँ, “तू मेरा ख़ुदा है!”

15मेरी तक़्दीर [a] लफ़्ज़ी तर्जुमा : मेरे औक़ात। तेरे हाथ में है। मुझे मेरे दुश्मनों के हाथ से बचा, उन से जो मेरे पीछे पड़ गए हैं।

16अपने चिहरे का नूर अपने ख़ादिम पर चमका, अपनी मेहरबानी से मुझे नजात दे।

17ऐ रब्ब, मुझे शर्मिन्दा न होने दे, क्यूँकि मैं ने तुझे पुकारा है। मेरे बजाय बेदीनों के मुँह काले हो जाएँ, वह पाताल में उतर कर चुप हो जाएँ।

18उन के फ़रेबदिह होंट बन्द हो जाएँ, क्यूँकि वह तकब्बुर और हिक़ारत से रास्तबाज़ के ख़िलाफ़ कुफ़्र बकते हैं।

19तेरी भलाई कितनी अज़ीम है! तू उसे उन के लिए तय्यार रखता है जो तेरा ख़ौफ़ मानते हैं, उसे उन्हें दिखाता है जो इन्सानों के सामने से तुझ में पनाह लेते हैं।

20तू उन्हें अपने चिहरे की आड़ में लोगों के हम्लों से छुपा लेता, उन्हें ख़ैमे में ला कर इल्ज़ामतराश ज़बानों से मह्फ़ूज़ रखता है।

21रब्ब की तम्जीद हो, क्यूँकि जब शहर का मुहासरा हो रहा था तो उस ने मोजिज़ाना तौर पर मुझ पर मेहरबानी की।

22उस वक़्त मैं घबरा कर बोला, “हाय, मैं तेरे हुज़ूर से मुन्क़ते हो गया हूँ!” लेकिन जब मैं ने चीख़ते चिल्लाते हुए तुझ से मदद माँगी तो तू ने मेरी इल्तिजा सुन ली।

23ऐ रब्ब के तमाम ईमानदारो, उस से मुहब्बत रखो! रब्ब वफ़ादारों को मह्फ़ूज़ रखता, लेकिन मग़रूरों को उन के रवय्ये का पूरा अज्र देगा।

24चुनाँचे मज़्बूत और दिलेर हो, तुम सब जो रब्ब के इन्तिज़ार में हो।

[a] लफ़्ज़ी तर्जुमा : मेरे औक़ात।