ज़बूर 140

दुश्मन से रिहाई की दुआ

1दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए।

ऐ रब्ब, मुझे शरीरों से छुड़ा और ज़ालिमों से मह्फ़ूज़ रख।

2दिल में वह बुरे मन्सूबे बाँधते, रोज़ाना जंग छेड़ते हैं।

3उन की ज़बान साँप की ज़बान जैसी तेज़ है, और उन के होंटों में साँप का ज़हर है। (सिलाह)

4ऐ रब्ब, मुझे बेदीन के हाथों से मह्फ़ूज़ रख, ज़ालिम से मुझे बचाए रख, उन से जो मेरे पाँओ को ठोकर खिलाने के मन्सूबे बाँध रहे हैं।

5मग़रूरों ने मेरे रास्ते में फंदा और रस्से छुपाए हैं, उन्हों ने जाल बिछा कर रास्ते के किनारे किनारे मुझे पकड़ने के फंदे लगाए हैं। (सिलाह)

6मैं रब्ब से कहता हूँ, “तू ही मेरा ख़ुदा है, मेरी इल्तिजाओं की आवाज़ सुन!”

7ऐ रब्ब क़ादिर-ए-मुतलक़, ऐ मेरी क़वी नजात! जंग के दिन तू अपनी ढाल से मेरे सर की हिफ़ाज़त करता है।

8ऐ रब्ब, बेदीन का लालच पूरा न कर। उस का इरादा काम्याब होने न दे, ऐसा न हो कि यह लोग सरफ़राज़ हो जाएँ। (सिलाह)

9उन्हों ने मुझे घेर लिया है, लेकिन जो आफ़त उन के होंट मुझ पर लाना चाहते हैं वह उन के अपने सरों पर आए!

10दहकते कोइले उन पर बरसें, और उन्हें आग में, अथाह गढ़ों में फैंका जाए ताकि आइन्दा कभी न उठें।

11तुहमत लगाने वाला मुल्क में क़ाइम न रहे, और बुराई ज़ालिम को मार मार कर उस का पीछा करे।

12मैं जानता हूँ कि रब्ब अदालत में मुसीबतज़दा का दिफ़ा करेगा। वही ज़रूरतमन्द का इन्साफ़ करेगा।

13यक़ीनन रास्तबाज़ तेरे नाम की सिताइश करेंगे, और दियानतदार तेरे हुज़ूर बसेंगे।