ज़बूर 139

अल्लाह सब कुछ जानता और हर जगह मौजूद है

1दाऊद का ज़बूर। मूसीक़ी के राहनुमा के लिए।

ऐ रब्ब, तू मेरा मुआइना करता और मुझे ख़ूब जानता है।

2मेरा उठना बैठना तुझे मालूम है, और तू दूर से ही मेरी सोच समझता है।

3तू मुझे जाँचता है, ख़्वाह मैं रास्ते में हूँ या आराम करूँ। तू मेरी तमाम राहों से वाक़िफ़ है।

4क्यूँकि जब भी कोई बात मेरी ज़बान पर आए तू ऐ रब्ब पहले ही उस का पूरा इल्म रखता है।

5तू मुझे चारों तरफ़ से घेरे रखता है, तेरा हाथ मेरे ऊपर ही रहता है।

6इस का इल्म इतना हैरानकुन और अज़ीम है कि मैं इसे समझ नहीं सकता।

7मैं तेरे रूह से कहाँ भाग जाऊँ, तेरे चिहरे से कहाँ फ़रार हो जाऊँ?

8अगर आस्मान पर चढ़ जाऊँ तो तू वहाँ मौजूद है, अगर उतर कर अपना बिस्तर पाताल में बिछाऊँ तो तू वहाँ भी है।

9गो मैं तुलू-ए-सुब्ह के परों पर उड़ कर समुन्दर की दूरतरीन हद्द पर जा बसूँ,

10वहाँ भी तेरा हाथ मेरी क़ियादत करेगा, वहाँ भी तेरा दहना हाथ मुझे थामे रखेगा।

11अगर मैं कहूँ, “तारीकी मुझे छुपा दे, और मेरे इर्दगिर्द की रौशनी रात में बदल जाए,” तो भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा।

12तेरे सामने तारीकी भी तारीक नहीं होती, तेरे हुज़ूर रात दिन की तरह रौशन होती है बल्कि रौशनी और अंधेरा एक जैसे होते हैं।

13क्यूँकि तू ने मेरा बातिन बनाया है, तू ने मुझे माँ के पेट में तश्कील दिया है।

14मैं तेरा शुक्र करता हूँ कि मुझे जलाली और मोजिज़ाना तौर से बनाया गया है। तेरे काम हैरतअंगेज़ हैं, और मेरी जान यह ख़ूब जानती है।

15मेरा ढाँचा तुझ से छुपा नहीं था जब मुझे पोशीदगी में बनाया गया, जब मुझे ज़मीन की गहराइयों में तश्कील दिया गया।

16तेरी आँखों ने मुझे उस वक़्त देखा जब मेरे जिस्म की शक्ल अभी नामुकम्मल थी। जितने भी दिन मेरे लिए मुक़र्रर थे वह सब तेरी किताब में उस वक़्त दर्ज थे, जब एक भी नहीं गुज़रा था।

17ऐ अल्लाह, तेरे ख़यालात समझना मेरे लिए कितना मुश्किल है! उन की कुल तादाद कितनी अज़ीम है।

18अगर मैं उन्हें गिन सकता तो वह रेत से ज़ियादा होते। मैं जाग उठता हूँ तो तेरे ही साथ होता हूँ।

19ऐ अल्लाह, काश तू बेदीन को मार डाले, कि ख़ूँख़ार मुझ से दूर हो जाएँ।

20वह फ़रेब से तेरा ज़िक्र करते हैं, हाँ तेरे मुख़ालिफ़ झूट बोलते हैं।

21ऐ रब्ब, क्या मैं उन से नफ़रत न करूँ जो तुझ से नफ़रत करते हैं? क्या मैं उन से घिन न खाऊँ जो तेरे ख़िलाफ़ उठे हैं?

22यक़ीनन मैं उन से सख़्त नफ़रत करता हूँ। वह मेरे दुश्मन बन गए हैं।

23ऐ अल्लाह, मेरा मुआइना करके मेरे दिल का हाल जान ले, मुझे जाँच कर मेरे बेचैन ख़यालात को जान ले।

24मैं नुक़्सानदिह राह पर तो नहीं चल रहा? अबदी राह पर मेरी क़ियादत कर