ज़बूर 132

दाऊद का घराना और सिय्यून पर मक़्दिस

1ज़ियारत का गीत।

ऐ रब्ब, दाऊद का ख़याल रख, उस की तमाम मुसीबतों को याद कर।

2उस ने क़सम खा कर रब्ब से वादा किया और याक़ूब के क़वी ख़ुदा के हुज़ूर मन्नत मानी,

3“न मैं अपने घर में दाख़िल हूँगा, न बिस्तर पर लेटूँगा,

4न मैं अपनी आँखों को सोने दूँगा, न अपने पपोटों को ऊँघने दूँगा

5जब तक रब्ब के लिए मक़ाम और याक़ूब के सूर्मे के लिए सुकूनतगाह न मिले।”

6हम ने इफ़्राता में अह्द के सन्दूक़ की ख़बर सुनी और यार के खुले मैदान में उसे पा लिया।

7आओ, हम उस की सुकूनतगाह में दाख़िल हो कर उस के पाँओ की चौकी के सामने सिज्दा करें।

8ऐ रब्ब, उठ कर अपनी आरामगाह के पास आ, तू और अह्द का सन्दूक़ जो तेरी क़ुद्रत का इज़्हार है।

9तेरे इमाम रास्ती से मुलब्बस हो जाएँ, और तेरे ईमानदार ख़ुशी के नारे लगाएँ।

10ऐ अल्लाह, अपने ख़ादिम दाऊद की ख़ातिर अपने मसह किए हुए बन्दे के चिहरे को रद्द न कर।

11रब्ब ने क़सम खा कर दाऊद से वादा किया है, और वह उस से कभी नहीं फिरेगा, “मैं तेरी औलाद में से एक को तेरे तख़्त पर बिठाऊँगा।

12अगर तेरे बेटे मेरे अह्द से वफ़ादार रहें और उन अह्काम की पैरवी करें जो मैं उन्हें सिखाऊँगा तो उन के बेटे भी हमेशा तक तेरे तख़्त पर बैठेंगे।”

13क्यूँकि रब्ब ने कोह-ए-सिय्यून को चुन लिया है, और वही वहाँ सुकूनत करने का आर्ज़ूमन्द था।

14उस ने फ़रमाया, “यह हमेशा तक मेरी आरामगाह है, और यहाँ मैं सुकूनत करूँगा, क्यूँकि मैं इस का आर्ज़ूमन्द हूँ।

15मैं सिय्यून की ख़ुराक को कस्रत की बर्कत दे कर उस के ग़रीबों को रोटी से सेर करूँगा।

16मैं उस के इमामों को नजात से मुलब्बस करूँगा, और उस के ईमानदार ख़ुशी से ज़ोरदार नारे लगाएँगे।

17यहाँ मैं दाऊद की ताक़त बढ़ा दूँगा [a] लफ़्ज़ी तर्जुमा : मैं दाऊद का सींग फूटने दूँगा। , और यहाँ मैं ने अपने मसह किए हुए ख़ादिम के लिए चराग़ तय्यार कर रखा है।

18मैं उस के दुश्मनों को शर्मिन्दगी से मुलब्बस करूँगा जबकि उस के सर का ताज चमकता रहेगा।”

[a] लफ़्ज़ी तर्जुमा : मैं दाऊद का सींग फूटने दूँगा।