ज़बूर 130
बड़ी मुसीबत से रिहाई की दुआ (तौबा का छटा ज़बूर)
1ज़ियारत का गीत।
ऐ रब्ब, मैं तुझे गहराइयों से पुकारता हूँ।
2ऐ रब्ब, मेरी आवाज़ सुन! कान लगा कर मेरी इल्तिजाओं पर ध्यान दे!
3ऐ रब्ब, अगर तू हमारे गुनाहों का हिसाब करे तो कौन क़ाइम रहेगा? कोई भी नहीं!
4लेकिन तुझ से मुआफ़ी हासिल होती है ताकि तेरा ख़ौफ़ माना जाए।
5मैं रब्ब के इन्तिज़ार में हूँ, मेरी जान शिद्दत से इन्तिज़ार करती है। मैं उस के कलाम से उम्मीद रखता हूँ।
6पहरेदार जिस शिद्दत से पौ फटने के इन्तिज़ार में रहते हैं, मेरी जान उस से भी ज़ियादा शिद्दत के साथ, हाँ ज़ियादा शिद्दत के साथ रब्ब की मुन्तज़िर रहती है।
7ऐ इस्राईल, रब्ब की राह देखता रह! क्यूँकि रब्ब के पास शफ़्क़त और फ़िद्या का ठोस बन्द-ओ-बस्त है।
8वह इस्राईल के तमाम गुनाहों का फ़िद्या दे कर उसे नजात देगा।