ज़बूर 119

अल्लाह के कलाम की शान

1

1मुबारक हैं वह जिन का चाल-चलन बेइल्ज़ाम है, जो रब्ब की शरीअत के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारते हैं।

2मुबारक हैं वह जो उस के अह्काम पर अमल करते और पूरे दिल से उस के तालिब रहते हैं,

3जो बदी नहीं करते बल्कि उस की राहों पर चलते हैं।

4तू ने हमें अपने अह्काम दिए हैं, और तू चाहता है कि हम हर लिहाज़ से उन के ताबे रहें।

5काश मेरी राहें इतनी पुख़्ता हों कि मैं साबितक़दमी से तेरे अह्काम पर अमल करूँ!

6तब मैं शर्मिन्दा नहीं हूँगा, क्यूँकि मेरी आँखें तेरे तमाम अह्काम पर लगी रहेंगी।

7जितना मैं तेरे बा-इन्साफ़ फ़ैसलों के बारे में सीखूँगा उतना ही दियानतदार दिल से तेरी सिताइश करूँगा।

8तेरे अह्काम पर मैं हर वक़्त अमल करूँगा। मुझे पूरी तरह तर्क न कर!

2

9नौजवान अपनी राह को किस तरह पाक रखे? इस तरह कि तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारे।

10मैं पूरे दिल से तेरा तालिब रहा हूँ। मुझे अपने अह्काम से भटकने न दे।

11मैं ने तेरा कलाम अपने दिल में मह्फ़ूज़ रखा है ताकि तेरा गुनाह न करूँ।

12ऐ रब्ब, तेरी हम्द हो! मुझे अपने अह्काम सिखा।

13अपने होंटों से मैं दूसरों को तेरे मुँह की तमाम हिदायात सुनाता हूँ।

14मैं तेरे अह्काम की राह से उतना लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ जितना कि हर तरह की दौलत से।

15मैं तेरी हिदायात में महव-ए-ख़याल रहूँगा और तेरी राहों को तकता रहूँगा।

16मैं तेरे फ़रमानों से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ और तेरा कलाम नहीं भूलता।

3

17अपने ख़ादिम से भलाई कर ताकि मैं ज़िन्दा रहूँ और तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारूँ।

18मेरी आँखों को खोल ताकि तेरी शरीअत के अजाइब देखूँ।

19दुनिया में मैं परदेसी ही हूँ। अपने अह्काम मुझ से छुपाए न रख!

20मेरी जान हर वक़्त तेरी हिदायात की आर्ज़ू करते करते निढाल हो रही है।

21तू मग़रूरों को डाँटता है। उन पर लानत जो तेरे अह्काम से भटक जाते हैं!

22मुझे लोगों की तौहीन और तह्क़ीर से रिहाई दे, क्यूँकि मैं तेरे अह्काम के ताबे रहा हूँ।

23गो बुज़ुर्ग मेरे ख़िलाफ़ मन्सूबे बाँधने के लिए बैठ गए हैं, तेरा ख़ादिम तेरे अह्काम में महव-ए-ख़याल रहता है।

24तेरे अह्काम से ही मैं लुत्फ़ उठाता हूँ, वही मेरे मुशीर हैं।

4

25मेरी जान ख़ाक में दब गई है। अपने कलाम के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर।

26मैं ने अपनी राहें बयान कीं तो तू ने मेरी सुनी। मुझे अपने अह्काम सिखा।

27मुझे अपने अह्काम की राह समझने के क़ाबिल बना ताकि तेरे अजाइब में महव-ए-ख़याल रहूँ।

28मेरी जान दुख के मारे निढाल हो गई है। मुझे अपने कलाम के मुताबिक़ तक़वियत दे।

29फ़रेब की राह मुझ से दूर रख और मुझे अपनी शरीअत से नवाज़।

30मैं ने वफ़ा की राह इख़तियार करके तेरे आईन अपने सामने रखे हैं।

31मैं तेरे अह्काम से लिपटा रहता हूँ। ऐ रब्ब, मुझे शर्मिन्दा न होने दे।

32मैं तेरे फ़रमानों की राह पर दौड़ता हूँ, क्यूँकि तू ने मेरे दिल को कुशादगी बख़्शी है।

5

33ऐ रब्ब, मुझे अपने आईन की राह सिखा तो मैं उम्र भर उन पर अमल करूँगा।

34मुझे समझ अता कर ताकि तेरी शरीअत के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारूँ और पूरे दिल से उस के ताबे रहूँ।

35अपने अह्काम की राह पर मेरी राहनुमाई कर, क्यूँकि यही मैं पसन्द करता हूँ।

36मेरे दिल को लालच में आने न दे बल्कि उसे अपने फ़रमानों की तरफ़ माइल कर।

37मेरी आँखों को बातिल चीज़ों से फेर ले, और मुझे अपनी राहों पर सँभाल कर मेरी जान को ताज़ादम कर।

38जो वादा तू ने अपने ख़ादिम से किया वह पूरा कर ताकि लोग तेरा ख़ौफ़ मानें।

39जिस रुस्वाई से मुझे ख़ौफ़ है उस का ख़त्रा दूर कर, क्यूँकि तेरे अह्काम अच्छे हैं।

40मैं तेरी हिदायात का शदीद आर्ज़ूमन्द हूँ, अपनी रास्ती से मेरी जान को ताज़ादम कर।

6

41ऐ रब्ब, तेरी शफ़्क़त और वह नजात जिस का वादा तू ने किया है मुझ तक पहुँचे

42ताकि मैं बेइज़्ज़ती करने वाले को जवाब दे सकूँ। क्यूँकि मैं तेरे कलाम पर भरोसा रखता हूँ।

43मेरे मुँह से सच्चाई का कलाम न छीन, क्यूँकि मैं तेरे फ़रमानों के इन्तिज़ार में हूँ।

44मैं हर वक़्त तेरी शरीअत की पैरवी करूँगा, अब से अबद तक उस में क़ाइम रहूँगा।

45मैं खुले मैदान में चलता फिरूँगा, क्यूँकि तेरे आईन का तालिब रहता हूँ।

46मैं शर्म किए बग़ैर बादशाहों के सामने तेरे अह्काम बयान करूँगा।

47मैं तेरे फ़रमानों से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ, वह मुझे पियारे हैं।

48मैं अपने हाथ तेरे फ़रमानों की तरफ़ उठाऊँगा, क्यूँकि वह मुझे पियारे हैं। मैं तेरी हिदायात में महव-ए-ख़याल रहूँगा।

7

49उस बात का ख़याल रख जो तू ने अपने ख़ादिम से की और जिस से तू ने मुझे उम्मीद दिलाई है।

50मुसीबत में यही तसल्ली का बाइस रहा है कि तेरा कलाम मेरी जान को ताज़ादम करता है।

51मग़रूर मेरा हद्द से ज़ियादा मज़ाक़ उड़ाते हैं, लेकिन मैं तेरी शरीअत से दूर नहीं होता।

52ऐ रब्ब, मैं तेरे क़दीम फ़रमान याद करता हूँ तो मुझे तसल्ली मिलती है।

53बेदीनों को देख कर मैं आग-बगूला हो जाता हूँ, क्यूँकि उन्हों ने तेरी शरीअत को तर्क किया है।

54जिस घर में मैं परदेसी हूँ उस में मैं तेरे अह्काम के गीत गाता रहता हूँ।

55ऐ रब्ब, रात को मैं तेरा नाम याद करता हूँ, तेरी शरीअत पर अमल करता रहता हूँ।

56यह तेरी बख़्शिश है कि मैं तेरे आईन की पैरवी करता हूँ।

8

57रब्ब मेरी मीरास है। मैं ने तेरे फ़रमानों पर अमल करने का वादा किया है।

58मैं पूरे दिल से तेरी शफ़्क़त का तालिब रहा हूँ। अपने वादे के मुताबिक़ मुझ पर मेहरबानी कर।

59मैं ने अपनी राहों पर ध्यान दे कर तेरे अह्काम की तरफ़ क़दम बढ़ाए हैं।

60मैं नहीं झिजकता बल्कि भाग कर तेरे अह्काम पर अमल करने की कोशिश करता हूँ।

61बेदीनों के रस्सों ने मुझे जकड़ लिया है, लेकिन मैं तेरी शरीअत नहीं भूलता।

62आधी रात को मैं जाग उठता हूँ ताकि तेरे रास्त फ़रमानों के लिए तेरा शुक्र करूँ।

63मैं उन सब का साथी हूँ जो तेरा ख़ौफ़ मानते हैं, उन सब का दोस्त जो तेरी हिदायात पर अमल करते हैं।

64ऐ रब्ब, दुनिया तेरी शफ़्क़त से मामूर है। मुझे अपने अह्काम सिखा!

9

65ऐ रब्ब, तू ने अपने कलाम के मुताबिक़ अपने ख़ादिम से भलाई की है।

66मुझे सहीह इमतियाज़ और इर्फ़ान सिखा, क्यूँकि मैं तेरे अह्काम पर ईमान रखता हूँ।

67इस से पहले कि मुझे पस्त किया गया मैं आवारा फिरता था, लेकिन अब मैं तेरे कलाम के ताबे रहता हूँ।

68तू भला है और भलाई करता है। मुझे अपने आईन सिखा!

69मग़रूरों ने झूट बोल कर मुझ पर कीचड़ उछाली है, लेकिन मैं पूरे दिल से तेरी हिदायात की फ़रमाँबरदारी करता हूँ।

70उन के दिल अकड़ कर बेहिस्स हो गए हैं, लेकिन मैं तेरी शरीअत से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ।

71मेरे लिए अच्छा था कि मुझे पस्त किया गया, क्यूँकि इस तरह मैं ने तेरे अह्काम सीख लिए।

72जो शरीअत तेरे मुँह से सादिर हुई है वह मुझे सोने-चाँदी के हज़ारों सिक्कों से ज़ियादा पसन्द है।

10

73तेरे हाथों ने मुझे बना कर मज़्बूत बुन्याद पर रख दिया है। मुझे समझ अता फ़रमा ताकि तेरे अह्काम सीख लूँ।

74जो तेरा ख़ौफ़ मानते हैं वह मुझे देख कर ख़ुश हो जाएँ, क्यूँकि मैं तेरे कलाम के इन्तिज़ार में रहता हूँ।

75ऐ रब्ब, मैं ने जान लिया है कि तेरे फ़ैसले रास्त हैं। यह भी तेरी वफ़ादारी का इज़्हार है कि तू ने मुझे पस्त किया है।

76तेरी शफ़्क़त मुझे तसल्ली दे, जिस तरह तू ने अपने ख़ादिम से वादा किया है।

77मुझ पर अपने रहम का इज़्हार कर ताकि मेरी जान में जान आए, क्यूँकि मैं तेरी शरीअत से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ।

78जो मग़रूर मुझे झूट से पस्त कर रहे हैं वह शर्मिन्दा हो जाएँ। लेकिन मैं तेरे फ़रमानों में महव-ए-ख़याल रहूँगा।

79काश जो तेरा ख़ौफ़ मानते और तेरे अह्काम जानते हैं वह मेरे पास वापस आएँ!

80मेरा दिल तेरे आईन की पैरवी करने में बेइल्ज़ाम रहे ताकि मेरी रुस्वाई न हो जाए।

11

81मेरी जान तेरी नजात की आर्ज़ू करते करते निढाल हो रही है, मैं तेरे कलाम के इन्तिज़ार में हूँ।

82मेरी आँखें तेरे वादे की राह देखते देखते धुन्दला रही हैं। तू मुझे कब तसल्ली देगा?

83मैं धुएँ में सुकड़ी हुई मश्क की मानिन्द हूँ लेकिन तेरे फ़रमानों को नहीं भूलता।

84तेरे ख़ादिम को मज़ीद कितनी देर इन्तिज़ार करना पड़ेगा? तू मेरा ताक़्क़ुब करने वालों की अदालत कब करेगा?

85जो मग़रूर तेरी शरीअत के ताबे नहीं होते उन्हों ने मुझे फंसाने के लिए गढ़े खोद लिए हैं।

86तेरे तमाम अह्काम पुरवफ़ा हैं। मेरी मदद कर, क्यूँकि वह झूट का सहारा ले कर मेरा ताक़्क़ुब कर रहे हैं।

87वह मुझे रू-ए-ज़मीन पर से मिटाने के क़रीब ही हैं, लेकिन मैं ने तेरे आईन को तर्क नहीं किया।

88अपनी शफ़्क़त का इज़्हार करके मेरी जान को ताज़ादम कर ताकि तेरे मुँह के फ़रमानों पर अमल करूँ।

12

89ऐ रब्ब, तेरा कलाम अबद तक आस्मान पर क़ाइम-ओ-दाइम है।

90तेरी वफ़ादारी पुश्त-दर-पुश्त रहती है। तू ने ज़मीन की बुन्याद रखी, और वह वहीं की वहीं बरक़रार रहती है।

91आज तक आस्मान-ओ-ज़मीन तेरे फ़रमानों को पूरा करने के लिए हाज़िर रहते हैं, क्यूँकि तमाम चीज़ें तेरी ख़िदमत करने के लिए बनाई गई हैं।

92अगर तेरी शरीअत मेरी ख़ुशी न होती तो मैं अपनी मुसीबत में हलाक हो गया होता।

93मैं तेरी हिदायात कभी नहीं भूलूँगा, क्यूँकि उन ही के ज़रीए तू मेरी जान को ताज़ादम करता है।

94मैं तेरा ही हूँ, मुझे बचा! क्यूँकि मैं तेरे अह्काम का तालिब रहा हूँ।

95बेदीन मेरी ताक में बैठ गए हैं ताकि मुझे मार डालें, लेकिन मैं तेरे आईन पर ध्यान देता रहूँगा।

96मैं ने देखा है कि हर कामिल चीज़ की हद्द होती है, लेकिन तेरे फ़रमान की कोई हद्द नहीं होती।

13

97तेरी शरीअत मुझे कितनी पियारी है! दिन भर मैं उस में महव-ए-ख़याल रहता हूँ।

98तेरा फ़रमान मुझे मेरे दुश्मनों से ज़ियादा दानिशमन्द बना देता है, क्यूँकि वह हमेशा तक मेरा ख़ज़ाना है।

99मुझे अपने तमाम उस्तादों से ज़ियादा समझ हासिल है, क्यूँकि मैं तेरे आईन में महव-ए-ख़याल रहता हूँ।

100मुझे बुज़ुर्गों से ज़ियादा समझ हासिल है, क्यूँकि मैं वफ़ादारी से तेरे अह्काम की पैरवी करता हूँ।

101मैं ने हर बुरी राह पर क़दम रखने से गुरेज़ किया है ताकि तेरे कलाम से लिपटा रहूँ।

102मैं तेरे फ़रमानों से दूर नहीं हुआ, क्यूँकि तू ही ने मुझे तालीम दी है।

103तेरा कलाम कितना लज़ीज़ है, वह मेरे मुँह में शहद से ज़ियादा मीठा है।

104तेरे अह्काम से मुझे समझ हासिल होती है, इस लिए मैं झूट की हर राह से नफ़रत करता हूँ।

14

105तेरा कलाम मेरे पाँओ के लिए चराग़ है जो मेरी राह को रौशन करता है।

106मैं ने क़सम खाई है कि तेरे रास्त फ़रमानों की पैरवी करूँगा, और मैं यह वादा पूरा भी करूँगा।

107मुझे बहुत पस्त किया गया है। ऐ रब्ब, अपने कलाम के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर।

108ऐ रब्ब, मेरे मुँह की रज़ाकाराना क़ुर्बानियों को पसन्द कर और मुझे अपने आईन सिखा!

109मेरी जान हमेशा ख़त्रे में है, लेकिन मैं तेरी शरीअत नहीं भूलता।

110बेदीनों ने मेरे लिए फंदा तय्यार कर रखा है, लेकिन मैं तेरे फ़रमानों से नहीं भटका।

111तेरे अह्काम मेरी अबदी मीरास बन गए हैं, क्यूँकि उन से मेरा दिल ख़ुशी से उछलता है।

112मैं ने अपना दिल तेरे अह्काम पर अमल करने की तरफ़ माइल किया है, क्यूँकि इस का अज्र अबदी है।

15

113मैं दोदिलों से नफ़रत लेकिन तेरी शरीअत से मुहब्बत करता हूँ।

114तू मेरी पनाहगाह और मेरी ढाल है, मैं तेरे कलाम के इन्तिज़ार में रहता हूँ।

115ऐ बदकारो, मुझ से दूर हो जाओ, क्यूँकि मैं अपने ख़ुदा के अह्काम से लिपटा रहूँगा।

116अपने फ़रमान के मुताबिक़ मुझे सँभाल ताकि ज़िन्दा रहूँ। मेरी आस टूटने न दे ताकि शर्मिन्दा न हो जाऊँ।

117मेरा सहारा बन ताकि बच कर हर वक़्त तेरे आईन का लिहाज़ रखूँ।

118तू उन सब को रद्द करता है जो तेरे अह्काम से भटके फिरते हैं, क्यूँकि उन की धोकेबाज़ी फ़रेब ही है।

119तू ज़मीन के तमाम बेदीनों को नापाक चाँदी से ख़ारिज की हुई मैल की तरह फैंक कर नेस्त कर देता है, इस लिए तेरे फ़रमान मुझे पियारे हैं।

120मेरा जिस्म तुझ से दह्शत खा कर थरथराता है, और मैं तेरे फ़ैसलों से डरता हूँ।

16

121मैं ने रास्त और बा-इन्साफ़ काम किया है, चुनाँचे मुझे उन के हवाले न कर जो मुझ पर ज़ुल्म करते हैं।

122अपने ख़ादिम की ख़ुशहाली का ज़ामिन बन कर मग़रूरों को मुझ पर ज़ुल्म करने न दे।

123मेरी आँखें तेरी नजात और तेरे रास्त वादे की राह देखते देखते रह गई हैं।

124अपने ख़ादिम से तेरा सुलूक तेरी शफ़्क़त के मुताबिक़ हो। मुझे अपने अह्काम सिखा।

125मैं तेरा ही ख़ादिम हूँ। मुझे फ़हम अता फ़रमा ताकि तेरे आईन की पूरी समझ आए।

126अब वक़्त आ गया है कि रब्ब क़दम उठाए, क्यूँकि लोगों ने तेरी शरीअत को तोड़ डाला है।

127इस लिए मैं तेरे अह्काम को सोने बल्कि ख़ालिस सोने से ज़ियादा पियार करता हूँ।

128इस लिए मैं एहतियात से तेरे तमाम आईन के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारता हूँ। मैं हर फ़रेबदिह राह से नफ़रत करता हूँ।

17

129तेरे अह्काम ताज्जुबअंगेज़ हैं, इस लिए मेरी जान उन पर अमल करती है।

130तेरे कलाम का इन्किशाफ़ रौशनी बख़्शता और सादालौह को समझ अता करता है।

131मैं तेरे फ़रमानों के लिए इतना पियासा हूँ कि मुँह खोल कर हाँप रहा हूँ।

132मेरी तरफ़ रुजू फ़रमा और मुझ पर वही मेहरबानी कर जो तू उन सब पर करता है जो तेरे नाम से पियार करते हैं।

133अपने कलाम से मेरे क़दम मज़्बूत कर, किसी भी गुनाह को मुझ पर हुकूमत न करने दे।

134फ़िद्या दे कर मुझे इन्सान के ज़ुल्म से छुटकारा दे ताकि मैं तेरे अह्काम के ताबे रहूँ।

135अपने चिहरे का नूर अपने ख़ादिम पर चमका और मुझे अपने अह्काम सिखा।

136मेरी आँखों से आँसूओं की नदियाँ बह रही हैं, क्यूँकि लोग तेरी शरीअत के ताबे नहीं रहते।

18

137ऐ रब्ब, तू रास्त है, और तेरे फ़ैसले दुरुस्त हैं।

138तू ने रास्ती और बड़ी वफ़ादारी के साथ अपने फ़रमान जारी किए हैं।

139मेरी जान ग़ैरत के बाइस तबाह हो गई है, क्यूँकि मेरे दुश्मन तेरे फ़रमान भूल गए हैं।

140तेरा कलाम आज़्मा कर पाक-साफ़ साबित हुआ है, तेरा ख़ादिम उसे पियार करता है।

141मुझे ज़लील और हक़ीर जाना जाता है, लेकिन मैं तेरे आईन नहीं भूलता।

142तेरी रास्ती अबदी है, और तेरी शरीअत सच्चाई है।

143मुसीबत और परेशानी मुझ पर ग़ालिब आ गई हैं, लेकिन मैं तेरे अह्काम से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ।

144तेरे अह्काम अबद तक रास्त हैं। मुझे समझ अता फ़रमा ताकि मैं जीता रहूँ।

19

145मैं पूरे दिल से पुकारता हूँ, “ऐ रब्ब, मेरी सुन! मैं तेरे आईन के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारूँगा।”

146मैं पुकारता हूँ, “मुझे बचा! मैं तेरे अह्काम की पैरवी करूँगा।”

147पौ फटने से पहले पहले मैं उठ कर मदद के लिए पुकारता हूँ। मैं तेरे कलाम के इन्तिज़ार में हूँ।

148रात के वक़्त ही मेरी आँखें खुल जाती हैं ताकि तेरे कलाम पर ग़ौर-ओ-ख़ौज़ करूँ।

149अपनी शफ़्क़त के मुताबिक़ मेरी आवाज़ सुन! ऐ रब्ब, अपने फ़रमानों के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर।

150जो चालाकी से मेरा ताक़्क़ुब कर रहे हैं वह क़रीब पहुँच गए हैं। लेकिन वह तेरी शरीअत से इन्तिहाई दूर हैं।

151ऐ रब्ब, तू क़रीब ही है, और तेरे अह्काम सच्चाई हैं।

152बड़ी देर पहले मुझे तेरे फ़रमानों से मालूम हुआ है कि तू ने उन्हें हमेशा के लिए क़ाइम रखा है।

20

153मेरी मुसीबत का ख़याल करके मुझे बचा! क्यूँकि मैं तेरी शरीअत नहीं भूलता।

154अदालत में मेरे हक़ में लड़ कर मेरा इवज़ाना दे ताकि मेरी जान छूट जाए। अपने वादे के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर।

155नजात बेदीनों से बहुत दूर है, क्यूँकि वह तेरे अह्काम के तालिब नहीं होते।

156ऐ रब्ब, तू मुतअद्दिद तरीक़ों से अपने रहम का इज़्हार करता है। अपने आईन के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर।

157मेरा ताक़्क़ुब करने वालों और मेरे दुश्मनों की बड़ी तादाद है, लेकिन मैं तेरे अह्काम से दूर नहीं हुआ।

158बेवफ़ाओं को देख कर मुझे घिन आती है, क्यूँकि वह तेरे कलाम के मुताबिक़ ज़िन्दगी नहीं गुज़ारते।

159देख, मुझे तेरे अह्काम से पियार है। ऐ रब्ब, अपनी शफ़्क़त के मुताबिक़ मेरी जान को ताज़ादम कर।

160तेरे कलाम का लुब्ब-ए-लुबाब सच्चाई है, तेरे तमाम रास्त फ़रमान अबद तक क़ाइम हैं।

21

161सरदार बिलावजह मेरा पीछा करते हैं, लेकिन मेरा दिल तेरे कलाम से ही डरता है।

162मैं तेरे कलाम की ख़ुशी उस की तरह मनाता हूँ जिसे कस्रत का माल-ए-ग़नीमत मिल गया हो।

163मैं झूट से नफ़रत करता बल्कि घिन खाता हूँ, लेकिन तेरी शरीअत मुझे पियारी है।

164मैं दिन में सात बार तेरी सिताइश करता हूँ, क्यूँकि तेरे अह्काम रास्त हैं।

165जिन्हें शरीअत पियारी है उन्हें बड़ा सुकून हासिल है, वह किसी भी चीज़ से ठोकर खा कर नहीं गिरेंगे।

166ऐ रब्ब, मैं तेरी नजात के इन्तिज़ार में रहते हुए तेरे अह्काम की पैरवी करता हूँ।

167मेरी जान तेरे फ़रमानों से लिपटी रहती है, वह उसे निहायत पियारे हैं।

168मैं तेरे आईन और हिदायात की पैरवी करता हूँ, क्यूँकि मेरी तमाम राहें तेरे सामने हैं।

22

169ऐ रब्ब, मेरी आहें तेरे सामने आएँ, मुझे अपने कलाम के मुताबिक़ समझ अता फ़रमा।

170मेरी इल्तिजाएँ तेरे सामने आएँ, मुझे अपने कलाम के मुताबिक़ छुड़ा!

171मेरे होंटों से हम्द-ओ-सना फूट निकले, क्यूँकि तू मुझे अपने अह्काम सिखाता है।

172मेरी ज़बान तेरे कलाम की मद्हसराई करे, क्यूँकि तेरे तमाम फ़रमान रास्त हैं।

173तेरा हाथ मेरी मदद करने के लिए तय्यार रहे, क्यूँकि मैं ने तेरे अह्काम इख़तियार किए हैं।

174ऐ रब्ब, मैं तेरी नजात का आर्ज़ूमन्द हूँ, तेरी शरीअत से लुत्फ़अन्दोज़ होता हूँ।

175मेरी जान ज़िन्दा रहे ताकि तेरी सिताइश कर सके। तेरे आईन मेरी मदद करें।

176मैं भटकी हुई भेड़ की तरह आवारा फिर रहा हूँ। अपने ख़ादिम को तलाश कर, क्यूँकि मैं तेरे अह्काम नहीं भूलता।