अम्साल 7

बेवफ़ा बीवी

1मेरे बेटे, मेरे अल्फ़ाज़ की पैरवी कर, मेरे अह्काम अपने अन्दर मह्फ़ूज़ रख। 2मेरे अह्काम के ताबे रह तो जीता रहेगा। अपनी आँख की पुतली की तरह मेरी हिदायत की हिफ़ाज़त कर। 3उन्हें अपनी उंगली के साथ बाँध, अपने दिल की तख़्ती पर कन्दा कर। 4हिक्मत से कह, “तू मेरी बहन है,” और समझ से, “तू मेरी क़रीबी रिश्तेदार है।” 5यही तुझे ज़िनाकार औरत से मह्फ़ूज़ रखेंगी, दूसरे की उस बीवी से जो अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से तुझे फुसलाने की कोशिश करती है।

6एक दिन मैं ने अपने घर की खिड़की [a] लफ़्ज़ी तर्जुमा : घर की खिड़की के जंगले। में से बाहर झाँका 7तो क्या देखता हूँ कि वहाँ कुछ सादालौह नौजवान खड़े हैं। उन में से एक बेअक़ल जवान नज़र आया। 8वह गली में से गुज़र कर ज़िनाकार औरत के कोने की तरफ़ टहलने लगा। चलते चलते वह उस रास्ते पर आ गया जो औरत के घर तक ले जाता है। 9शाम का धुन्दल्का था, दिन ढलने और रात का अंधेरा छाने लगा था। 10तब एक औरत कस्बी का लिबास पहने हुए चालाकी से उस से मिलने आई। 11यह औरत इतनी बेलगाम और ख़ुदसर है कि उस के पाँओ उस के घर में नहीं टिकते। 12कभी वह गली में, कभी चौकों में होती है, हर कोने पर वह ताक में बैठी रहती है।

13अब उस ने नौजवान को पकड़ कर उसे बोसा दिया। बेहया नज़र उस पर डाल कर उस ने कहा, 14“मुझे सलामती की क़ुर्बानियाँ पेश करनी थीं, और आज ही मैं ने अपनी मन्नतें पूरी कीं। 15इस लिए मैं निकल कर तुझ से मिलने आई, मैं ने तेरा पता किया और अब तू मुझे मिल गया है। 16मैं ने अपने बिस्तर पर मिस्र के रंगीन कम्बल बिछाए, 17उस पर मुर, ऊद और दारचीनी की ख़ुश्बू छिड़की है। 18आओ, हम सुब्ह तक मुहब्बत का पियाला तह तक पी लें, हम इश्क़बाज़ी से लुत्फ़अन्दोज़ हों! 19क्यूँकि मेरा ख़ावन्द घर में नहीं है, वह लम्बे सफ़र के लिए रवाना हुआ है। 20वह बटवे में पैसे डाल कर चला गया है और पूरे चाँद तक वापस नहीं आएगा।”

21ऐसी बातें करते करते औरत ने नौजवान को तरग़ीब दे कर अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से वरग़लाया। 22नौजवान सीधा उस के पीछे यूँ हो लिया जिस तरह बैल ज़बह होने के लिए जाता या हिरन उछल कर फंदे में फंस जाता है। 23क्यूँकि एक वक़्त आएगा कि तीर उस का दिल चीर डालेगा। लेकिन फ़िलहाल उस की हालत उस चिड़िया की मानिन्द है जो उड़ कर जाल में आ जाती और ख़याल तक नहीं करती कि मेरी जान ख़त्रे में है।

24चुनाँचे मेरे बेटो, मेरी सुनो, मेरे मुँह की बातों पर ध्यान दो! 25तेरा दिल भटक कर उस तरफ़ रुख़ न करे जहाँ ज़िनाकार औरत फिरती है, ऐसा न हो कि तू आवारा हो कर उस की राहों में उलझ जाए। 26क्यूँकि उन की तादाद बड़ी है जिन्हें उस ने गिरा कर मौत के घाट उतारा है, उस ने मुतअद्दिद लोगों को मार डाला है। 27उस का घर पाताल का रास्ता है जो लोगों को मौत की कोठड़ियों तक पहुँचाता है।

[a] लफ़्ज़ी तर्जुमा : घर की खिड़की के जंगले।