अम्साल 2

हिक्मत की अहमियत

1मेरे बेटे, मेरी बात क़बूल करके मेरे अह्काम अपने दिल में मह्फ़ूज़ रख। 2अपना कान हिक्मत पर धर, अपना दिल समझ की तरफ़ माइल कर। 3बसीरत के लिए आवाज़ दे, चिल्ला कर समझ माँग। 4उसे यूँ तलाश कर गोया चाँदी हो, उस का यूँ खोज लगा गोया पोशीदा ख़ज़ाना हो। 5अगर तू ऐसा करे तो तुझे रब्ब के ख़ौफ़ की समझ आएगी और अल्लाह का इर्फ़ान हासिल होगा। 6क्यूँकि रब्ब ही हिक्मत अता करता, उसी के मुँह से इर्फ़ान और समझ निकलती है। 7वह सीधी राह पर चलने वालों को काम्याबी फ़राहम करता और बेइल्ज़ाम ज़िन्दगी गुज़ारने वालों की ढाल बना रहता है। 8क्यूँकि वह इन्साफ़ पसन्दों की राहों की पहरादारी करता है। जहाँ भी उस के ईमानदार चलते हैं वहाँ वह उन की हिफ़ाज़त करता है।

9तब तुझे रास्ती, इन्साफ़, दियानतदारी और हर अच्छी राह की समझ आएगी। 10क्यूँकि तेरे दिल में हिक्मत दाख़िल हो जाएगी, और इल्म-ओ-इर्फ़ान तेरी जान को पियारा हो जाएगा। 11तमीज़ तेरी हिफ़ाज़त और समझ तेरी चौकीदारी करेगी। 12हिक्मत तुझे ग़लत राह और कजरौ बातें करने वाले से बचाए रखेगी। 13ऐसे लोग सीधी राह को छोड़ देते हैं ताकि तारीक रास्तों पर चलें, 14वह बुरी हर्कतें करने से ख़ुश हो जाते हैं, ग़लत काम की कजरवी देख कर जश्न मनाते हैं। 15उन की राहें टेढ़ी हैं, और वह जहाँ भी चलें आवारा फिरते हैं।

16हिक्मत तुझे नाजाइज़ औरत से छुड़ाती है, उस अजनबी औरत से जो चिकनी-चुपड़ी बातें करती, 17जो अपने जीवनसाथी को तर्क करके अपने ख़ुदा का अह्द भूल जाती है। 18क्यूँकि उस के घर में दाख़िल होने का अन्जाम मौत, उस की राहों की मन्ज़िल-ए-मक़सूद पाताल है। 19जो भी उस के पास जाए वह वापस नहीं आएगा, वह ज़िन्दगीबख़्श राहों पर दुबारा नहीं पहुँचेगा।

20चुनाँचे अच्छे लोगों की राह पर चल फिर, ध्यान दे कि तेरे क़दम रास्तबाज़ों के रास्ते पर रहें। 21क्यूँकि सीधी राह पर चलने वाले मुल्क में आबाद होंगे, आख़िरकार बेइल्ज़ाम ही उस में बाक़ी रहेंगे। 22लेकिन बेदीन मुल्क से मिट जाएँगे, और बेवफ़ाओं को उखाड़ कर मुल्क से ख़ारिज कर दिया जाएगा।