नहमियाह 9

इस्राईली अपने गुनाहों का इक़्रार करते हैं

1उसी महीने के 24वें दिन [a] 31 अक्तूबर। इस्राईली रोज़ा रखने के लिए जमा हुए। टाट के लिबास पहने हुए और सर पर ख़ाक डाल कर वह यरूशलम आए। 2अब वह तमाम ग़ैरयहूदियों से अलग हो कर उन गुनाहों का इक़्रार करने के लिए हाज़िर हुए जो उन से और उन के बापदादा से सरज़द हुए थे। 3तीन घंटे वह खड़े रहे, और उस दौरान रब्ब उन के ख़ुदा की शरीअत की तिलावत की गई। फिर वह रब्ब अपने ख़ुदा के सामने मुँह के बल झुक कर मज़ीद तीन घंटे अपने गुनाहों का इक़्रार करते रहे।

4यशूअ, बानी, क़दमीएल, सबनियाह, बुन्नी, सरिबियाह, बानी और कनानी जो लावी थे एक चबूतरे पर खड़े हुए और बुलन्द आवाज़ से रब्ब अपने ख़ुदा से दुआ की।

5फिर यशूअ, क़दमीएल, बानी, हसब्नियाह, सरिबियाह, हूदियाह, सबनियाह और फ़तहियाह जो लावी थे बोल उठे, “खड़े हो कर रब्ब अपने ख़ुदा की जो अज़ल से अबद तक है सिताइश करें!”

उन्हों दुआ की,

“तेरे जलाली नाम की तम्जीद हो, जो हर मुबारकबादी और तारीफ़ से कहीं बढ़ कर है। 6ऐ रब्ब, तू ही वाहिद ख़ुदा है! तू ने आस्मान को एक सिरे से दूसरे सिरे तक उस के लश्कर समेत ख़लक़ किया। ज़मीन और जो कुछ उस पर है, समुन्दर और जो कुछ उस में है सब कुछ तू ही ने बनाया है। तू ने सब को ज़िन्दगी बख़्शी है, और आस्मानी लश्कर तुझे सिज्दा करता है।

7तू ही रब्ब और वह ख़ुदा है जिस ने अब्राम को चुन लिया और कस्दियों के शहर ऊर से बाहर ला कर इब्राहीम का नाम रखा। 8तू ने उस का दिल वफ़ादार पाया और उस से अह्द बाँध कर वादा किया, ‘मैं तेरी औलाद को कनआनियों, हित्तियों, अमोरियों, फ़रिज़्ज़ियों, यबूसियों और जिर्जासियों का मुल्क अता करूँगा।‪’ और तू अपने वादे पर पूरा उतरा, क्यूँकि तू क़ाबिल-ए-एतिमाद और आदिल है।

9तू ने हमारे बापदादा के मिस्र में बुरे हाल पर ध्यान दिया, और बहर-ए-क़ुल्ज़ुम के किनारे पर मदद के लिए उन की चीख़ें सुनीं। 10तू ने इलाही निशानों और मोजिज़ों से फ़िरऔन, उस के अफ़्सरों और उस के मुल्क की क़ौम को सज़ा दी, क्यूँकि तू जानता था कि मिस्री हमारे बापदादा से कैसा गुस्ताखाना सुलूक करते रहे हैं। यूँ तेरा नाम मश्हूर हुआ और आज तक याद रहा है। 11क़ौम के देखते देखते तू ने समुन्दर को दो हिस्सों में तक़्सीम कर दिया, और वह ख़ुश्क ज़मीन पर चल कर उस में से गुज़र सके। लेकिन उन का ताक़्क़ुब करने वालों को तू ने मुतलातिम पानी में फैंक दिया, और वह पत्थरों की तरह समुन्दर की गहराइयों में डूब गए।

12दिन के वक़्त तू ने बादल के सतून से और रात के वक़्त आग के सतून से अपनी क़ौम की राहनुमाई की। यूँ वह रास्ता अंधेरे में भी रौशन रहा जिस पर उन्हें चलना था। 13तू कोह-ए-सीना पर उतर आया और आस्मान से उन से हमकलाम हुआ। तू ने उन्हें साफ़ हिदायात और क़ाबिल-ए-एतिमाद अह्काम दिए, ऐसे क़वाइद जो अच्छे हैं। 14तू ने उन्हें सबत के दिन के बारे में आगाह किया, उस दिन के बारे में जो तेरे लिए मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस है। अपने ख़ादिम मूसा की मारिफ़त तू ने उन्हें अह्काम और हिदायात दीं। 15जब वह भूके थे तो तू ने उन्हें आस्मान से रोटी खिलाई, और जब पियासे थे तो तू ने उन्हें चटान से पानी पिलाया। तू ने हुक्म दिया, ‘जाओ, मुल्क में दाख़िल हो कर उस पर क़ब्ज़ा कर लो, क्यूँकि मैं ने हाथ उठा कर क़सम खाई है कि तुम्हें यह मुल्क दूँगा।’

16अफ़्सोस, हमारे बापदादा मग़रूर और ज़िद्दी हो गए। वह तेरे अह्काम के ताबे न रहे। 17उन्हों ने तेरी सुनने से इन्कार किया और वह मोजिज़ात याद न रखे जो तू ने उन के दर्मियान किए थे। वह यहाँ तक अड़ गए कि उन्हों ने एक राहनुमा को मुक़र्रर किया जो उन्हें मिस्र की ग़ुलामी में वापस ले जाए। लेकिन तू मुआफ़ करने वाला ख़ुदा है जो मेहरबान और रहीम, तहम्मुल और शफ़्क़त से भरपूर है। तू ने उन्हें तर्क न किया, 18उस वक़्त भी नहीं जब उन्हों ने अपने लिए सोने का बछड़ा ढाल कर कहा, ‘यह तेरा ख़ुदा है जो तुझे मिस्र से निकाल लाया।’ इस क़िस्म का सन्जीदा कुफ़्र वह बकते रहे। 19लेकिन तू बहुत रहमदिल है, इस लिए तू ने उन्हें रेगिस्तान में न छोड़ा। दिन के वक़्त बादल का सतून उन की राहनुमाई करता रहा, और रात के वक़्त आग का सतून वह रास्ता रौशन करता रहा जिस पर उन्हें चलना था। 20न सिर्फ़ यह बल्कि तू ने उन्हें अपना नेक रूह अता किया जो उन्हें तालीम दे। जब उन्हें भूक और पियास थी तो तू उन्हें मन्न खिलाने और पानी पिलाने से बाज़ न आया। 21चालीस साल वह रेगिस्तान में फिरते रहे, और उस पूरे अर्से में तू उन की ज़रूरियात को पूरा करता रहा। उन्हें कोई भी कमी नहीं थी। न उन के कपड़े घिस कर फटे और न उन के पाँओ सूजे।

22तू ने ममालिक और क़ौमें उन के हवाले कर दीं, मुख़्तलिफ़ इलाक़े यके बाद दीगरे उन के क़ब्ज़े में आए। यूँ वह सीहोन बादशाह के मुल्क हस्बोन और ओज बादशाह के मुल्क बसन पर फ़त्ह पा सके। 23उन की औलाद तेरी मर्ज़ी से आस्मान पर के सितारों जैसी बेशुमार हुई, और तू उन्हें उस मुल्क में लाया जिस का वादा तू ने उन के बापदादा से किया था। 24वह मुल्क में दाख़िल हो कर उस के मालिक बन गए। तू ने कनआन के बाशिन्दों को उन के आगे आगे ज़ेर कर दिया। मुल्क के बादशाह और क़ौमें उन के क़ब्ज़े में आ गईं, और वह अपनी मर्ज़ी के मुताबिक़ उन से निपट सके। 25क़िलआबन्द शहर और ज़रख़ेज़ ज़मीनें तेरी क़ौम के क़ाबू में आ गईं, नीज़ हर क़िस्म की अच्छी चीज़ों से भरे घर, तय्यारशुदा हौज़, अंगूर के बाग़ और कस्रत के ज़ैतून और दीगर फलदार दरख़्त। वह जी भर कर खाना खा कर मोटे हो गए और तेरी बर्कतों से लुत्फ़अन्दोज़ होते रहे।

26इस के बावुजूद वह ताबे न रहे बल्कि सरकश हुए। उन्हों ने अपना मुँह तेरी शरीअत से फेर लिया। और जब तेरे नबी उन्हें समझा समझा कर तेरे पास वापस लाना चाहते थे तो उन्हों ने बड़े कुफ़्र बक कर उन्हें क़त्ल कर दिया। 27यह देख कर तू ने उन्हें उन के दुश्मनों के हवाले कर दिया जो उन्हें तंग करते रहे। जब वह मुसीबत में फंस गए तो वह चीख़ें मार मार कर तुझ से फ़र्याद करने लगे। और तू ने आस्मान पर से उन की सुनी। बड़ा तरस खा कर तू ने उन के पास ऐसे लोगों को भेज दिया जिन्हों ने उन्हें दुश्मनों के हाथ से छुड़ाया। 28लेकिन जूँ ही इस्राईलियों को सुकून मिलता वह दुबारा ऐसी हर्कतें करने लगते जो तुझे नापसन्द थीं। नतीजे में तू उन्हें दुबारा उन के दुश्मन के हाथ में छोड़ देता। जब वह उन की हुकूमत के तहत पिसने लगते तो वह एक बार फिर चिल्ला चिल्ला कर तुझ से इलतिमास करने लगते। इस बार भी तू आस्मान पर से उन की सुनता। हाँ, तू इतना रहमदिल है कि तू उन्हें बार बार छुटकारा देता रहा! 29तू उन्हें समझाता रहा ताकि वह दुबारा तेरी शरीअत की तरफ़ रुजू करें, लेकिन वह मग़रूर थे और तेरे अह्काम के ताबे न हुए। उन्हों ने तेरी हिदायात की ख़िलाफ़वरज़ी की, हालाँकि इन ही पर चलने से इन्सान को ज़िन्दगी हासिल होती है। लेकिन उन्हों ने पर्वा न की बल्कि अपना मुँह तुझ से फेर कर अड़ गए और सुनने के लिए तय्यार न हुए।

30उन की हर्कतों के बावुजूद तू बहुत सालों तक सब्र करता रहा। तेरा रूह उन्हें नबियों के ज़रीए समझाता रहा, लेकिन उन्हों ने ध्यान न दिया। तब तू ने उन्हें ग़ैरक़ौमों के हवाले कर दिया। 31ताहम तेरा रहम से भरा दिल उन्हें तर्क करके तबाह नहीं करना चाहता था। तू कितना मेहरबान और रहीम ख़ुदा है!

32ऐ हमारे ख़ुदा, ऐ अज़ीम, क़वी और महीब ख़ुदा जो अपना अह्द और अपनी शफ़्क़त क़ाइम रखता है, इस वक़्त हमारी मुसीबत पर ध्यान दे और उसे कम न समझ! क्यूँकि हमारे बादशाह, बुज़ुर्ग, इमाम और नबी बल्कि हमारे बापदादा और पूरी क़ौम असूरी बादशाहों के पहले हम्लों से ले कर आज तक सख़्त मुसीबत बर्दाश्त करते रहे हैं। 33हक़ीक़त तो यह है कि जो भी मुसीबत हम पर आई है उस में तू रास्त साबित हुआ है। तू वफ़ादार रहा है, गो हम क़ुसूरवार ठहरे हैं। 34हमारे बादशाह और बुज़ुर्ग, हमारे इमाम और बापदादा, उन सब ने तेरी शरीअत की पैरवी न की। जो अह्काम और तम्बीह तू ने उन्हें दी उस पर उन्हों ने ध्यान ही न दिया। 35तू ने उन्हें उन की अपनी बादशाही, कस्रत की अच्छी चीज़ों और एक वसी और ज़रख़ेज़ मुल्क से नवाज़ा था। तो भी वह तेरी ख़िदमत करने के लिए तय्यार न थे और अपनी ग़लत राहों से बाज़ न आए।

36इस का अन्जाम यह हुआ है कि आज हम उस मुल्क में ग़ुलाम हैं जो तू ने हमारे बापदादा को अता किया था ताकि वह उस की पैदावार और दौलत से लुत्फ़अन्दोज़ हो जाएँ। 37मुल्क की वाफ़िर पैदावार उन बादशाहों तक पहुँचती है जिन्हें तू ने हमारे गुनाहों की वजह से हम पर मुक़र्रर किया है। अब वही हम पर और हमारे मवेशियों पर हुकूमत करते हैं। उन ही की मर्ज़ी चलती है। चुनाँचे हम बड़ी मुसीबत में फंसे हैं।

क़ौम का अह्दनामा

38यह तमाम बातें मद्द-ए-नज़र रख कर हम अहद बाँध कर उसे क़लमबन्द कर रहे हैं। हमारे बुज़ुर्ग, लावी और इमाम दस्तख़त करके अह्दनामे पर मुहर लगा रहे हैं।”

[a] 31 अक्तूबर।