अहबार 21

इमामों के लिए हिदायात

1रब्ब ने मूसा से कहा, “हारून के बेटों को जो इमाम हैं बता देना कि इमाम अपने आप को किसी इस्राईली की लाश के क़रीब जाने से नापाक न करे 2सिवा-ए-अपने क़रीबी रिश्तेदारों के यानी माँ, बाप, बेटा, बेटी, भाई 3और जो ग़ैरशादीशुदा बहन उस के घर में रहती है। 4वह अपनी क़ौम में किसी और के बाइस अपने आप को नापाक न करे, वर्ना उस की मुक़द्दस हालत जाती रहेगी।

5इमाम अपने सर को न मुंडवाएँ। वह न अपनी दाढ़ी को तराशें और न काटने से अपने आप को ज़ख़्मी करें।

6वह अपने ख़ुदा के लिए मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस रहें और अपने ख़ुदा के नाम को दाग़ न लगाएँ। चूँकि वह रब्ब को जलने वाली क़ुर्बानियाँ यानी अपने ख़ुदा की रोटी पेश करते हैं इस लिए लाज़िम है कि वह मुक़द्दस रहें। 7इमाम ज़िनाकार औरत, मन्दिर की कस्बी या तलाक़याफ़्ता औरत से शादी न करें, क्यूँकि वह अपने रब्ब के लिए मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस हैं। 8इमाम को मुक़द्दस समझना, क्यूँकि वह तेरे ख़ुदा की रोटी को क़ुर्बानगाह पर चढ़ाता है। वह तेरे लिए मुक़द्दस ठहरे क्यूँकि मैं रब्ब क़ुद्दूस हूँ। मैं ही तुम्हें मुक़द्दस करता हूँ।

9किसी इमाम की जो बेटी ज़िनाकारी से अपनी मुक़द्दस हालत को ख़त्म कर देती है वह अपने बाप की मुक़द्दस हालत को भी ख़त्म कर देती है। उसे जला दिया जाए।

10इमाम-ए-आज़म के सर पर मसह का तेल उंडेला गया है और उसे इमाम-ए-आज़म के मुक़द्दस कपड़े पहनने का इख़तियार दिया गया है। इस लिए वह रंज के आलम में अपने बालों को बिखरने न दे, न कभी अपने कपड़ों को फाड़े। 11वह किसी लाश के क़रीब न जाए, चाहे वह उस के बाप या माँ की लाश क्यूँ न हो, वर्ना वह नापाक हो जाएगा। 12जब तक कोई लाश उस के घर में पड़ी रहे वह मक़्दिस को छोड़ कर अपने घर न जाए, वर्ना वह मक़्दिस को नापाक करेगा। क्यूँकि उसे उस के ख़ुदा के तेल से मख़्सूस किया गया है। मैं रब्ब हूँ। 13इमाम-ए-आज़म को सिर्फ़ कुंवारी से शादी की इजाज़त है। 14वह बेवा, तलाक़याफ़्ता औरत, मन्दिर की कस्बी या ज़िनाकार औरत से शादी न करे बल्कि सिर्फ़ अपने क़बीले की कुंवारी से, 15वर्ना उस की औलाद मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस नहीं होगी। क्यूँकि मैं रब्ब हूँ जो उसे अपने लिए मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस करता हूँ।”

16रब्ब ने मूसा से यह भी कहा, 17“हारून को बताना कि तेरी औलाद में से कोई भी जिस के जिस्म में नुक़्स हो मेरे हुज़ूर आ कर अपने ख़ुदा की रोटी न चढ़ाए। यह उसूल आने वाली नसलों के लिए भी अटल है। 18क्यूँकि कोई भी माज़ूर मेरे हुज़ूर न आए, न अंधा, न लंगड़ा, न वह जिस की नाक चिरी हुई हो या जिस के किसी उज़्व में कमी बेशी हो, 19न वह जिस का पाँओ या हाथ टूटा हुआ हो, 20न कुबड़ा, न बौना, न वह जिस की आँख में नुक़्स हो या जिसे वबाई जिल्दी बीमारी हो या जिस के ख़ुस्ये कुचले हुए हों। 21हारून इमाम की कोई भी औलाद जिस के जिस्म में नुक़्स हो मेरे हुज़ूर आ कर रब्ब को जलने वाली क़ुर्बानियाँ पेश न करे। चूँकि उस में नुक़्स है इस लिए वह मेरे हुज़ूर आ कर अपने ख़ुदा की रोटी न चढ़ाए। 22उसे अल्लाह की मुक़द्दस बल्कि मुक़द्दसतरीन क़ुर्बानियों में से भी इमामों का हिस्सा खाने की इजाज़त है। 23लेकिन चूँकि उस में नुक़्स है इस लिए वह मुक़द्दसतरीन कमरे के दरवाज़े के पर्दे के क़रीब न जाए, न क़ुर्बानगाह के पास आए। वर्ना वह मेरी मुक़द्दस चीज़ों को नापाक करेगा। क्यूँकि मैं रब्ब हूँ जो उन्हें अपने लिए मख़्सूस-ओ-मुक़द्दस करता हूँ।”

24मूसा ने यह हिदायात हारून, उस के बेटों और तमाम इस्राईलियों को दीं।