नोहा 4

यरूशलम की मुसीबत

1हाय, सोने की आब-ओ-ताब न रही, ख़ालिस सोना भी माँद पड़ गया है। मक़्दिस के जवाहिर तमाम गलियों में बिखरे पड़े हैं।

2पहले तो सिय्यून के गिराँक़दर फ़र्ज़न्द ख़ालिस सोने जैसे क़ीमती थे, लेकिन अब वह गोया मिट्टी के बर्तन समझे जाते हैं जो आम कुम्हार ने बनाए हैं।

3गो गीदड़ भी अपने बच्चों को दूध पिलाते हैं, लेकिन मेरी क़ौम रेगिस्तान में रहने वाले उक़ाबी उल्लू जैसी ज़ालिम हो गई है।

4शीरख़्वार बच्चे की ज़बान पियास के मारे तालू से चिपक गई है। छोटे बच्चे भूक के मारे रोटी माँगते हैं, लेकिन खिलाने वाला कोई नहीं है।

5जो पहले लज़ीज़ खाना खाते थे वह अब गलियों में तबाह हो रहे हैं। जो पहले अर्ग़वानी रंग के शानदार कपड़े पहनते थे वह अब कूड़े-कर्कट में लोट-पोट हो रहे हैं।

6मेरी क़ौम से सदूम की निस्बत कहीं ज़ियादा संगीन गुनाह सरज़द हुआ है। और सदूम का क़ुसूर इतना संगीन था कि वह एक ही लम्हे में तबाह हुआ। किसी ने भी मुदाख़लत न की।

7सिय्यून के रईस कितने शानदार थे! जिल्द बर्फ़ जैसी निखरी, दूध जैसी सफ़ेद थी। रुख़सार मूँगे की तरह गुलाबी, शक्ल-ओ-सूरत संग-ए-लाजवर्द [a] lapis lazuli जैसी चमकदार थी।

8लेकिन अब वह कोइले जैसे काले नज़र आते हैं। जब गलियों में घूमते हैं तो उन्हें पहचाना नहीं जाता। उन की हड्डियों पर की जिल्द सुकड़ कर लकड़ी की तरह सूखी हुई है।

9जो तल्वार से हलाक हुए उन का हाल उन से बेहतर था जो भूकों मर गए। क्यूँकि खेतों से ख़ुराक न मिलने पर वह घुल घुल कर मर गए।

10जब मेरी क़ौम तबाह हुई तो इतना सख़्त काल पड़ गया कि नर्मदिल माओं ने भी अपने बच्चों को पका कर खा लिया।

11रब्ब ने अपना पूरा ग़ज़ब सिय्यून पर नाज़िल किया, उसे अपने शदीद क़हर का निशाना बनाया। उस ने यरूशलम में इतनी ज़बरदस्त आग लगाई कि वह बुन्यादों तक भस्म हो गया।

12अब दुश्मन यरूशलम के दरवाज़ों में दाख़िल हुए हैं, हालाँकि दुनिया के तमाम बादशाह बल्कि सब लोग समझते थे कि यह मुम्किन ही नहीं।

13लेकिन यह सब कुछ उस के नबियों और इमामों के सबब से हुआ जिन्हों ने शहर ही में रास्तबाज़ों की ख़ूँरेज़ी की।

14अब यही लोग अंधों की तरह गलियों में टटोल टटोल कर फिरते हैं। वह ख़ून से इतने आलूदा हैं कि सब लोग उन के कपड़ों से लगने से गुरेज़ करते हैं।

15उन्हें देख कर लोग गरजते हैं, “हटो, तुम नापाक हो! भाग जाओ, दफ़ा हो जाओ, हमें हाथ मत लगाना!” फिर जब वह दीगर अक़्वाम में जा कर इधर उधर फिरने लगते हैं तो वहाँ के लोग भी कहते हैं कि यह मज़ीद यहाँ न ठहरें।

16रब्ब ने ख़ुद उन्हें मुन्तशिर कर दिया, अब से वह उन का ख़याल नहीं करेगा। अब न इमामों की इज़्ज़त होती है, न बुज़ुर्गों पर मेहरबानी की जाती है।

17हम चारों तरफ़ आँख दौड़ाते रहे, लेकिन बेफ़ाइदा, कोई मदद न मिली। देखते देखते हमारी नज़र धुन्दला गई। क्यूँकि हम अपने बुर्जों पर खड़े एक ऐसी क़ौम के इन्तिज़ार में रहे जो हमारी मदद कर ही नहीं सकती थी।

18हम अपने चौकों में जा न सके, क्यूँकि वहाँ दुश्मन हमारी ताक में बैठा था। हमारा ख़ातमा क़रीब आया, हमारा मुक़र्ररा वक़्त इख़तितामपज़ीर हुआ, हमारा अन्जाम आ पहुँचा।

19जिस तरह आस्मान पर मंडलाने वाला उक़ाब एक दम शिकार पर झपट पड़ता है उसी तरह हमारा ताक़्क़ुब करने वाले हम पर टूट पड़े, और वह भी कहीं ज़ियादा तेज़ी से। वह पहाड़ों पर हमारे पीछे पीछे भागे और रेगिस्तान में हमारी घात में रहे।

20हमारा बादशाह भी उन के गढ़ों में फंस गया। जो हमारी जान था और जिसे रब्ब ने मसह करके चुन लिया था उसे भी पकड़ लिया गया, गो हम ने सोचा था कि उस के साय में बस कर अक़्वाम के दर्मियान मह्फ़ूज़ रहेंगे।

21ऐ अदोम बेटी, बेशक शादियाना बजा! बेशक मुल्क-ए-ऊज़ में रह कर ख़ुशी मना! लेकिन ख़बरदार, अल्लाह के ग़ज़ब का पियाला तुझे भी पिलाया जाएगा। तब तू उसे पी पी कर मस्त हो जाएगी और नशे में अपने कपड़े उतार कर बरहना फिरेगी।

22ऐ सिय्यून बेटी, तेरी सज़ा का वक़्त पूरा हो गया है। अब से रब्ब तुझे क़ैदी बना कर जिलावतन नहीं करेगा। लेकिन ऐ अदोम बेटी, वह तुझे तेरे क़ुसूर का पूरा अज्र देगा, वह तेरे गुनाहों पर से पर्दा उठा लेगा।

[a] lapis lazuli