अय्यूब 18
बिल्दद : अल्लाह बेदीनों को सज़ा देता है
1बिल्दद सूख़ी ने जवाब दे कर कहा,
2“तू कब तक ऐसी बातें करेगा? इन से बाज़ आ कर होश में आ! तब ही हम सहीह बात कर सकेंगे। 3तू हमें डंगर जैसे अहमक़ क्यूँ समझता है? 4गो तू आग-बगूला हो कर अपने आप को फाड़ रहा है, लेकिन क्या तेरे बाइस ज़मीन को वीरान होना चाहिए और चटानों को अपनी जगह से खिसक्ना चाहिए? हरगिज़ नहीं!
5यक़ीनन बेदीन का चराग़ बुझ जाएगा, उस की आग का शोला आइन्दा नहीं चमकेगा। 6उस के ख़ैमे में रौशनी अंधेरा हो जाएगी, उस के ऊपर की शमा बुझ जाएगी। 7उस के लम्बे क़दम रुक रुक कर आगे बढ़ेंगे, और उस का अपना मन्सूबा उसे पटख़ देगा।
8उस के अपने पाँओ उसे जाल में फंसा देते हैं, वह दाम पर ही चलता फिरता है। 9फंदा उस की एड़ी पकड़ लेता, कमन्द उसे जकड़ लेती है। 10उसे फंसाने का रस्सा ज़मीन में छुपा हुआ है, रास्ते में फंदा बिछा है।
11वह ऐसी चीज़ों से घिरा रहता है जो उसे क़दम-ब-क़दम दह्शत खिलाती और उस की नाक में दम करती हैं। 12आफ़त उसे हड़प कर लेना चाहती है, तबाही तय्यार खड़ी है ताकि उसे गिरते वक़्त ही पकड़ ले। 13बीमारी उस की जिल्द को खा जाती, मौत का पहलौठा उस के आज़ा को निगल लेता है। 14उसे उस के ख़ैमे की हिफ़ाज़त से छीन लिया जाता और घसीट कर दह्शतों के बादशाह के सामने लाया जाता है।
15उस के ख़ैमे में आग बसती, उस के घर पर गंधक बिखर जाती है। 16नीचे उस की जड़ें सूख जाती, ऊपर उस की शाख़ें मुरझा जाती हैं। 17ज़मीन पर से उस की याद मिट जाती है, कहीं भी उस का नाम-ओ-निशान नहीं रहता।
18उसे रौशनी से तारीकी में धकेला जाता, दुनिया से भगा कर ख़ारिज किया जाता है। 19क़ौम में उस की न औलाद न नसल रहेगी, जहाँ पहले रहता था वहाँ कोई नहीं बचेगा। 20उस का अन्जाम देख कर मग़रिब के बाशिन्दों के रोंगटे खड़े हो जाते और मशरिक़ के बाशिन्दे दह्शतज़दा हो जाते हैं। 21यही है बेदीन के घर का अन्जाम, उसी के मक़ाम का जो अल्लाह को नहीं जानता।”