अज़्रा 9
ग़ैरयहूदी बीवियों पर अफ़्सोस
1-2 कुछ देर बाद क़ौम के राहनुमा मेरे पास आए और कहने लगे, “क़ौम के आम लोगों, इमामों और लावियों ने अपने आप को मुल्क की दीगर क़ौमों से अलग नहीं रखा, गो यह घिनौने रस्म-ओ-रिवाज के पैरोकार हैं। उन की औरतों से शादी करके उन्हों ने अपने बेटों की भी शादी उन की बेटियों से कराई है। यूँ अल्लाह की मुक़द्दस क़ौम कनआनियों, हित्तियों, फ़रिज़्ज़ियों, यबूसियों, अम्मोनियों, मोआबियों, मिस्रियों और अमोरियों से आलूदा हो गई है। और बुज़ुर्गों और अफ़्सरों ने इस बेवफ़ाई में पहल की है!”
3यह सुन कर मैं ने रंजीदा हो कर अपने कपड़ों को फाड़ लिया और सर और दाढ़ी के बाल नोच नोच कर नंगे फ़र्श पर बैठ गया। 4वहाँ मैं शाम की क़ुर्बानी तक बेहिस्स-ओ-हर्कत बैठा रहा। इतने में बहुत से लोग मेरे इर्दगिर्द जमा हो गए। वह जिलावतनी से वापस आए हुए लोगों की बेवफ़ाई के बाइस थरथरा रहे थे, क्यूँकि वह इस्राईल के ख़ुदा के जवाब से निहायत ख़ौफ़ज़दा थे। 5शाम की क़ुर्बानी के वक़्त मैं वहाँ से उठ खड़ा हुआ जहाँ मैं तौबा की हालत में बैठा हुआ था। वही फटे हुए कपड़े पहने हुए मैं घुटने टेक कर झुक गया और अपने हाथों को आस्मान की तरफ़ उठाए हुए रब्ब अपने ख़ुदा से दुआ करने लगा,
6“ऐ मेरे ख़ुदा, मैं निहायत शर्मिन्दा हूँ। अपना मुँह तेरी तरफ़ उठाने की मुझ में जुरअत नहीं रही। क्यूँकि हमारे गुनाहों का इतना बड़ा ढेर लग गया है कि वह हम से ऊँचा है, बल्कि हमारा क़ुसूर आस्मान तक पहुँच गया है। 7हमारे बापदादा के ज़माने से ले कर आज तक हमारा क़ुसूर सन्जीदा रहा है। इसी वजह से हम बार बार परदेसी हुक्मरानों के क़ब्ज़े में आए हैं जिन्हों ने हमें और हमारे बादशाहों और इमामों को क़त्ल किया, गिरिफ़्तार किया, लूट लिया और हमारी बेहुरमती की। बल्कि आज तक हमारी हालत यही रही है।
8लेकिन इस वक़्त रब्ब हमारे ख़ुदा ने थोड़ी देर के लिए हम पर मेहरबानी की है। हमारी क़ौम के बचे खचे हिस्से को उस ने रिहाई दे कर अपने मुक़द्दस मक़ाम पर मह्फ़ूज़ रखा है। यूँ हमारे ख़ुदा ने हमारी आँखों में दुबारा चमक पैदा की और हमें कुछ सुकून मुहय्या किया है, गो हम अब तक ग़ुलामी में हैं। 9बेशक हम ग़ुलाम हैं, तो भी अल्लाह ने हमें तर्क नहीं किया बल्कि फ़ार्स के बादशाह को हम पर मेहरबानी करने की तहरीक दी है। उस ने हमें अज़ सर-ए-नौ ज़िन्दगी अता की है ताकि हम अपने ख़ुदा का घर दुबारा तामीर और उस के खंडरात बहाल कर सकें। अल्लाह ने हमें यहूदाह और यरूशलम में एक मह्फ़ूज़ चारदीवारी से घेर रखा है।
10लेकिन ऐ हमारे ख़ुदा, अब हम क्या कहें? अपनी इन हर्कतों के बाद हम क्या जवाब दें? हम ने तेरे उन अह्काम को नज़रअन्दाज़ किया है 11जो तू ने अपने ख़ादिमों यानी नबियों की मारिफ़त दिए थे।
तू ने फ़रमाया, ‘जिस मुल्क में तुम दाख़िल हो रहे हो ताकि उस पर क़ब्ज़ा करो वह उस में रहने वाली क़ौमों के घिनौने रस्म-ओ-रिवाज के सबब से नापाक है। मुल्क एक सिरे से दूसरे सिरे तक उन की नापाकी से भर गया है। 12लिहाज़ा अपनी बेटियों की उन के बेटों के साथ शादी मत करवाना, न अपने बेटों का उन की बेटियों के साथ रिश्ता बाँधना। कुछ न करो जिस से उन की सलामती और काम्याबी बढ़ती जाए। तब ही तुम ताक़तवर हो कर मुल्क की अच्छी पैदावार खाओगे, और तुम्हारी औलाद हमेशा तक मुल्क की अच्छी चीज़ें विरासत में पाती रहेगी।’
13अब हम अपनी शरीर हर्कतों और बड़े क़ुसूर की सज़ा भुगत रहे हैं, गो ऐ अल्लाह, तू ने हमें इतनी सख़्त सज़ा नहीं दी जितनी हमें मिलनी चाहिए थी। तू ने हमारा यह बचा खचा हिस्सा ज़िन्दा छोड़ा है। 14तो क्या यह ठीक है कि हम तेरे अह्काम की ख़िलाफ़वरज़ी करके ऐसी क़ौमों से रिश्ता बाँधें जो इस क़िस्म की घिनौनी हर्कतें करती हैं? हरगिज़ नहीं! क्या इस का यह नतीजा नहीं निकलेगा कि तेरा ग़ज़ब हम पर नाज़िल हो कर सब कुछ तबाह कर देगा और यह बचा खचा हिस्सा भी ख़त्म हो जाएगा? 15ऐ रब्ब इस्राईल के ख़ुदा, तू ही आदिल है। आज हम बचे हुए हिस्से की हैसियत से तेरे हुज़ूर खड़े हैं। हम क़ुसूरवार हैं और तेरे सामने क़ाइम नहीं रह सकते।”