आस्तर 3

हामान यहूदी क़ौम को हलाक करना चाहता है

1कुछ देर के बाद बादशाह ने हामान बिन हम्मदाता अजाजी को सरफ़राज़ करके दरबार में सब से आला उह्दा दिया। 2जब कभी हामान आ मौजूद होता तो शाही सहन के दरवाज़े के तमाम शाही अफ़्सर मुँह के बल झुक जाते, क्यूँकि बादशाह ने ऐसा करने का हुक्म दिया था। लेकिन मर्दकी ऐसा नहीं करता था।

3यह देख कर दीगर शाही मुलाज़िमों ने उस से पूछा, “आप बादशाह के हुक्म की ख़िलाफ़वरज़ी क्यूँ कर रहे हैं?”

4उस ने जवाब दिया, “मैं तो यहूदी हूँ।” रोज़-ब-रोज़ दूसरे उसे समझाते रहे, लेकिन वह न माना। आख़िरकार उन्हों ने हामान को इत्तिला दी, क्यूँकि वह देखना चाहते थे कि क्या वह मर्दकी का जवाब क़बूल करेगा या नहीं।

5जब हामान ने ख़ुद देखा कि मर्दकी मेरे सामने मुँह के बल नहीं झुकता तो वह आग-बगूला हो गया। 6वह फ़ौरन मर्दकी को क़त्ल करने के मन्सूबे बनाने लगा। लेकिन यह उस के लिए काफ़ी नहीं था। चूँकि उसे बताया गया था कि मर्दकी यहूदी है इस लिए वह फ़ार्सी सल्तनत में रहने वाले तमाम यहूदियों को हलाक करने का रास्ता ढूँडने लगा।

7चुनाँचे अख़स्वेरुस बादशाह की हुकूमत के 12वें साल के पहले महीने नीसान [a] अप्रैल ता मई। में हामान की मौजूदगी में क़ुरआ डाला गया। क़ुरआ डालने से हामान यहूदियों को क़त्ल करने की सब से मुबारक तारीख़ मालूम करना चाहता था। (क़ुरआ के लिए ‘पूर’ कहा जाता था।) इस तरीक़े से 12वें महीने अदार का 13वाँ दिन [b] 7 मार्च, 473 क़ म। निकला। 8तब हामान ने बादशाह से बात की, “आप की सल्तनत के तमाम सूबों में एक क़ौम बिखरी हुई है जो अपने आप को दीगर क़ौमों से अलग रखती है। उस के क़वानीन दूसरी तमाम क़ौमों से मुख़्तलिफ़ हैं, और उस के अफ़राद बादशाह के क़वानीन को नहीं मानते। मुनासिब नहीं कि बादशाह उन्हें बर्दाश्त करें!

9अगर बादशाह को मन्ज़ूर हो तो एलान करें कि इस क़ौम को हलाक कर दिया जाए। तब मैं शाही ख़ज़ानों में 3,35,000 किलोग्राम चाँदी जमा करा दूँगा।”

10बादशाह ने अपनी उंगली से वह अंगूठी उतारी जो शाही मुहर लगाने के लिए इस्तेमाल होती थी और उसे यहूदियों के दुश्मन हामान बिन हम्मदाता अजाजी को दे कर 11कहा, “चाँदी और क़ौम आप ही की हैं, उस के साथ वह कुछ करें जो आप को अच्छा लगे।”

12पहले महीने के 13वें दिन [c] 17 अप्रैल। हामान ने शाही मुहर्रिरों को बुलाया ताकि वह उस की तमाम हिदायात के मुताबिक़ ख़त लिख कर बादशाह के गवर्नरों, सूबों के दीगर हाकिमों और तमाम क़ौमों के बुज़ुर्गों को भेजें। यह ख़त हर क़ौम के अपने तर्ज़-ए-तहरीर और अपनी ज़बान में क़लमबन्द हुए। उन्हें बादशाह का नाम ले कर लिखा गया, फिर शाही अंगूठी की मुहर उन पर लगाई गई। उन में ज़ैल का एलान किया गया।

13“एक ही दिन में तमाम यहूदियों को हलाक और पूरे तौर पर तबाह करना है, ख़्वाह छोटे हों या बड़े, बच्चे हों या औरतें। साथ साथ उन की मिल्कियत भी ज़ब्त कर ली जाए।” इस के लिए 12वें महीने अदार का 13वाँ दिन [d] 7 मार्च। मुक़र्रर किया गया।

यह एलान तेज़रौ क़ासिदों के ज़रीए सल्तनत के तमाम सूबों में पहुँचाया गया 14ताकि उस की तस्दीक़ क़ानूनी तौर पर की जाए और तमाम क़ौमें मुक़र्ररा दिन के लिए तय्यार हों।

15बादशाह के हुक्म पर क़ासिद चल निकले। यह एलान सोसन के क़िलए में भी किया गया। फिर बादशाह और हामान खाने-पीने के लिए बैठ गए। लेकिन पूरे शहर में हलचल मच गई।

[a] अप्रैल ता मई।
[b] 7 मार्च, 473 क़ म।
[c] 17 अप्रैल।
[d] 7 मार्च।